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कपास की उन्नत किस्में लगाएँ

कपास की उन्नत किस्में लगाएँ

कम पानी वाले इलाकों में गर्मियों में कपास की खेती की जाती है। ​महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश सहित कई अन्य राज्यों में कपास की खेती किसान करते हैं। 

अब देशी कपास के बजाय हाइिब्रिज और बीटी कपास का क्षेत्र लगतार बढ़ रहा है। इसके लिए जरूरी है कि कपास की उन्नत किस्मों की जानकारी किसानों को हो। 

कपास की खेती के लिए अभी तक उन्नत किस्मों के हा​इब्रिड एनआरसी 7365, एसीएच 177-2, शक्ति 9, पीसीएच 9611, आरसीएच 314, 602, 791,776,650,773, 653, 809 नेमकोट 617,2502-2,311-1, केसीएच 999,  जेकेसीएच 8940, 841-2, एसीएच 155-2, एनएसपीएल 252, सीआरसीएच 653, एबीसीएच 243, एमएच 5302, एसडबल्यूसीएच 4757, 4748, वीआईसीएच 308, आईसीएच 809,जेकेसीएच 0109, अंकुर 3244 की संस्तुति की गई है। 

इसके अलावा उत्तर  प्रदेश के लिए देशी किस्मों में पुरानी लोहित, आरजी 8, सीएडी 4, सभी 150 से 180 दिन लेती हैं। औसत उपज 13 से 16 कुंतल प्रति हैक्टेयर है। 

अमेरिकन कपास की उन्नत किस्में की एचएस 6, विकास, एच 777, एफ 846, आरएस 810 से भी उपरोक्तानुसार उपज मिलती है। कपास की उन्नत किस्में कम लागत, कम पानी और जमीन से कम पोषक तत्वों का अवशेषण करती है।

इसकी जडें मूसला होती हैं यानी यह जमीन में काफी गहरे तक चली जाती हैं। जमीन की उपज क्षमता बढ़ाने के लिए भी यह बेहद अच्दी फसल है। इसके पत्ते झड़ कर खेत में खाद का काम करते हैं।

महाराष्ट्र में फसलों पर कीटों का प्रकोप, खरीफ की फसल हो रही बर्बाद

महाराष्ट्र में फसलों पर कीटों का प्रकोप, खरीफ की फसल हो रही बर्बाद

महाराष्ट्र में किसान अक्सर बारिश से परेशान रहते हैं लेकिन इस बार परेशानी उससे भी ज्यादा गंभीर है। दरअसल, उनकी खरीफ की फसल पर कीटों ने हमला बोल दिया है, जिसकी वजह से खड़ी फसल में भारी नुकसान हो रहा है। इस साल फसल सीजन की शुरुआत ही महाराष्ट्र के किसानों के लिए किसी बुरे सपने की तरह हुई। पहले काफी दिन तक बारिश नहीं हुई, लेकिन जब बारिश हुई तो मूसलाधार हुई और फसलें पानी में डूब गईं। अब अगस्त के महीने में जाकर बारिश हल्की हो रही है जिसके चलते कृषि कार्यों में तेजी तो आई है, लेकिन फसल बेहतर कैसे तैयार हो, इसको लेकर किसान जूझ रहे हैं।


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बारिश के बाद से पर्यावरण में तेजी से बदलाव देखने को मिला है, जिसकी वजह से फसलों पर तरह-तरह के कीट लग रहे हैं और उन्हें जमकर नुकसान हो रहा है। इस तरह का कीट का मामला सामने आया है जो फसलों का रस चूस लेता है और उन्हें सुखा देता है। ऐसे में भले ही अब बारिश का खतरा टल गया हो, लेकिन कीट लगने की वजह से उत्पादन पर असर पड़ने की आशंकाएं बढ़ गई हैं। पिछले साल कपास का रेट किसानों को अच्छा मिला था इसलिए महाराष्ट्र के कई इलाकों में कपास की जमकर बुवाई की गई है। ऐसे में किसान सोच रहे थे कि उत्पादन बढ़िया होगा तो उनके हालात सुधर जाएंगे, लेकिन कीटों के हमले के चलते ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है। किसानों का कहना है कि जब फसलें छोटी थीं जब कीटों ने हमला नहीं किया, बल्कि जैसे-जैसे फसलें बढ़ती गईं कीटों ने हमला करना शुरू कर दिया।


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राज्य में जून के महीने में बिल्कुल बारिश नहीं हुई थी। इसके बाद जुलाई के महीने से लेकर 15 अगस्त तक मूसलाधार बारिश हुई। आलम यह है कि इस बारिश के चलते कई खेतों में जलभराव हो गया। अब जहां जलभराव हुआ है वहां फफूंद या कवक रोग फैल रहे हैं, जिसके चलते फसलें बढ़ नहीं रही हैं। पहले बारिश का असर फसलों पर हुआ था, लेकिन अब बदलते पर्यावरण का असर साफ दिख रहा है। जिन क्षेत्रों में पानी भरा हुआ है वहां रस चूसने वाले कीड़े फसलों पर कहर बरपा रहे हैं। ये कीड़े रस चूस रहे हैं जिसके चलते कपास की पत्तियां लाल होकर गिर जाती हैं। इस कपास की बुवाई मई में की गई थी, जो अब अपने शबाब पर थी, लेकिन संक्रमण इतना खतरनाक है कि फूल मर रहे हैं। अब किसानों ने भी इन कीड़ों से निपटने के लिए कमर कस ली है और उनके द्वारा कैमिकल और उर्वरकों का उपयोग किया जा रहा है, ताकि इन कीड़ों को खत्म किया जा सके। लेकिन कामयाबी पूरी तरह इसमें भी अब तक नहीं मिल पाई है। किसानों को कीटों से कैसे लड़ा जाए इसके लेकर बहुत थोड़ी जानकारी होती है। ऐसे में अगर कृषि विभाग अपनी तरफ से कोई पहल करे तो राज्य के किसानों का भला हो जाएगा और वे अपनी फसलों को बचा पाएंगे।
नहीं होगी कपास की एमएसपी (MSP) में बढ़ोतरी, केंद्र ने किया इंकार

नहीं होगी कपास की एमएसपी (MSP) में बढ़ोतरी, केंद्र ने किया इंकार

केंद्र ने कपास की एमएसपी (MSP) में बढ़ोतरी करने से साफ़ इंकार कर दिया है. वहीं किसानों के मुताबिक उपज के लिए दी जाने वाली कीमतें बढ़ी हुई लागतों की भरपाई नहीं कर पा रही हैं. इसके अलावा खराब क्वालिटी वाले बीज और कीट की वजह से फसल पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. इन सब के बीच केंद्र सकरार का कहना है कि वह भारत में कपास के होने वाले उत्पादन और इसकी मांग के मुताबिक इसपर मिलने वाली एमएसपी में बढ़ोतरी के बारे में विचार करेगी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अभी कपास की घरेलू कीमतें एमएसपी से भी कहीं ज्यादा है. कीमतों में कमी आने पर एमएसपी का परिचालन शुरू किया जा सकता है. केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस वक्त यह जरूरी नहीं है कि एमएसपी के दाम को निर्धारित करने के लिए हम पूरी तरह से तैयार हैं. साल 2022 से 2023 में खरीफ के सीजन के लिए एक मीडियम स्टेपल कपास का एमएसपी करीब 6 हजार 80 रूपये है. लेकिन इस बीच ज्यादातर किसानों का कहना है कि उन्हें उपज के लिए एमएसपी से बेहद कम कीमत मिली. इसके अलावा बीज से लेकर कीटनाशक और उर्वरकों जैसी चीजों की कीमतों में बढ़ोतरी को देखते हुए यह बिलकुल भी पर्याप्त नहीं है.

कुछ ऐसी है किसानों की मांग

कपास किसान की मानें तो करीब चार सालों से कपास की खेती में कुछ ख़ास आय नहीं हुई, जिस वजह से उन्होंने करीब 60 फीसद जमीन पर कपास की खेती की ही नहीं. लेकिन इस वक्त कपास की उपज से किसान को करीब 8 हजार रुपये से भी ज्यादा की कमाई प्रति क्विंटल के हिसाब से हुई. देखा जाए तो यह कमाई एमएसपी से भी ज्यादा है. रिपोर्ट्स के मुताबिक साल 2022 मार्च के महीने में किसानों को 15 हजार रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से मिले थे, लेकिन कपास का उत्पादन बेहद कम था. बता दें ज्यादा लागत की वजह से एमएसपी को करीब 10 हजार रुपये तक प्रति क्विंटल के हिसाब से होना चाहिए. ये भी पढ़ें: कपास की बढ़ती कीमतों पर भी किसान को क्यों नहीं मिल पा रहा लाभ

इन राज्यों में है कुछ ऐसा हाल

कपास की फसल की कटाई पंजाब में चुकी है. पंजाब के किसानों को प्रति क्विंटल के हिसाब से 8 हजार दो सौ रूपये दिया जा रहा है, वहीं एक एकड़ के लिए केवल तीन क्विंटल ही उत्पान हो रहा है, जहां पर परेशान किसानों ने मुआवजे की मांग की है. बात महराष्ट्र की करें तो, यहां पर 12 हजार रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से किसानों को बिक्री मिल रही है. जानकारी के लिए बता दें की पिंक बॉलवर्म (गुलाबी सुंडी) के हमले की वजह से कपास का उत्पादन काफी कम हो रहा है जिस वजह से किसानों कपास के उचित एमएसपी को निर्धारित करने की मांग कर रहे हैं. इसके अलावा किसानों ने कपास के आयात पर भी रोक लगाने की मांग की है.